00 अब चाचा शिवपाल का क्या होगा ? लखनऊ। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव अब भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। विधानसभा चुनाव से पहले यादव परिवार की बहू का भाजपा में शामिल होना अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अपर्णा के भाजपा में जाने का सियासी लिहाज से भले ही सपा पर कोई बड़ा असर ना हो, लेकिन परिवार में इस टूट ने छवि की लड़ाई में अखिलेश को पीछे धकेल दिया है। हालांकि, अखिलेश ने अपर्णा के भाजपा में शामिल होने पर उन्हें बधाई दी। कहा कि नेता जी ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की थी।कुछ दिनों पहले भाजपा सरकार के मंत्रियों और विधायकों को तोड़कर अखिलेश ने जो संदेश देने की कोशिश की थी, अब उससे बड़ा संदेश भाजपा ने यादव परिवार को तोड़ कर दे दिया है।अपर्णा के भाजपा में शामिल होने के बाद एक बार फिर परिवार की लड़ाई घर की दहलीज पार कर बाहर आ गई है। अखिलेश सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों जिस तरह परिवार में कलह मची और परिवार बिखरा उसका असर चुनावी नतीजों में दिखाई दिया था। एक बार फिर 2022 विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम परिवार में टूट के बाद उस समझौते की चर्चा हो रही है, जो परिवार को एक रखने के लिए करीब 16-17 साल पहले हुआ था।मुलायम परिवार में हुए समझौते की शर्त-- उस समझौते के मुताबिक पिता की राजनीतिक विरासत के इकलौते वारिस अखिलेश यादव होंगे, जबकि साधना के बेटे प्रतीक यादव कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे। इतना ही नहीं उस वक्त जो प्रॉपर्टी थी, उसे भी दोनों भाइयों में बराबर-बराबर बांटा गया। परिवार के बेहद करीब रहे लोगों का दावा है कि पार्टी उस वक्त यह भी तय हुआ था कि साधना यादव के परिवार का खर्चा समाजवादी पार्टी उठाएगी।प्रतीक यादव लगातार कहते हैं कि वो कभी राजनीति में नही आएंगे। हालांकि, जब भी सवाल अपर्णा के सियासी भविष्य को लेकर होता, वह कहते कि इसका फैसला नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव और खुद अपर्णा कर सकती हैं। कहा जाता है कि एक पत्रकार की बेटी अपर्णा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमेशा से रही है। वह परिवार की दूसरी बहू डिंपल यादव की तरह पार्टी में आधिकार चाहती थीं।अपर्णा की इसी जिद की वजह से मुलायम सिंह यादव ने 2017 में अपर्णा को पार्टी का टिकट दिलवाया था, लेकिन अपर्णा चुनाव हार गईं। हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि वो चुनाव जीतें।2017 में योगी सरकार बनने के बाद भी अपर्णा ने कई बार सीएम योगी से मुलाकात की। इतना ही नही कई बार ऐसे बयान भी दिए जिनसे अखिलेश यादव की फजीहत हुई। राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा जुटाने वालों को अखिलेश ने चंदाजीवी कहा था, जबकि अपर्णा ने राममंदिर के लिए 11 लाख रुपए का दान दिया था। परिवार के करीबियों का मानना है कि इस बार अखिलेश ने फैसला कर लिया था कि ना तो अपर्णा को टिकट देंगे और ना ही कहीं जाने से रोकेंगे।अपर्णा यादव के बाद चाचा शिवपाल का क्या होगा?अपर्णा के साथ हमेशा खड़े दिखने वाले शिवपाल सिंह यादव का अगला कदम क्या होगा? अब इसको लेकर भी चर्चा होने लगी है। कहा जा रहा है कि 2016 में चाचा-भतीजे के बीच हुए विवाद के दौरान अपर्णा, चाचा शिवपाल के साथ खड़ी रहीं। अपर्णा हमेशा कहती कि वो वही करेंगी जो नेता जी और चाचा शिवपाल कहेंगे। खबर यह है कि अपर्णा अपनी महत्वाकांक्षा के चलते परिवार में अलग-थलग पड़ गई थीं। इस फैसले पर मुलायम और शिवपाल दोनों ने कुछ भी नहीं कहा। खबर है कि शिवपाल फिलहाल समाजवादी पार्टी के साथ ही हैं।